योगेश कुमार
संस्थापक एवं निदेशक – नियोधि फाउंडेशन


भारत की आत्मा गाँवों में

“भारत की आत्मा गाँवों में बसती है” — यह कोई केवल भाषाई अलंकार नहीं, बल्कि एक यथार्थ है।
किन्तु प्रश्न यह है कि क्या हमने कभी उस आत्मा की व्यथा को महसूस किया है? क्या हमने समझने का प्रयास किया कि गाँव की इस जीवंत आत्मा को सबसे अधिक आघात किससे पहुँचता है?

उत्तर है — भ्रष्टाचार, अव्यवस्था, और सामाजिक उदासीनता।

जब समूचा देश डिजिटलीकरण, स्मार्ट शहरों, कृत्रिम बुद्धिमत्ता और वैश्विक बाज़ार की बात करता है, तब भारत का आम ग्रामीण अब भी राशन की कालाबाज़ारी, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की उपेक्षा, विद्यालयों में शिक्षकों की अनुपस्थिति, और प्रशासनिक निष्क्रियता से पीड़ित है।
इसी अंधकार में “एक गाँव – एक ईमानदार योजना एक दीपशिखा बनकर उभरी है — जो नियोधि फाउंडेशन की दूरदर्शी सामाजिक पहल है।


यह योजना क्यों अति आवश्यक है?

क्योंकि सरकारें केवल तंत्र बदलती हैं, पर समाज का मूल स्वभाव जागरूक नागरिक ही बदलते हैं।

“एक गाँव – एक ईमानदार” योजना का उद्देश्य किसी सत्ता का विरोध करना नहीं है, अपितु यह है कि जनता और शासन के मध्य एक नैतिक सेतु निर्मित हो — ऐसा सेतु जो ईमानदारी, सेवा और सामाजिक उत्तरदायित्व पर आधारित हो।

यदि प्रत्येक गाँव में एक ऐसा नागरिक खड़ा हो जाए जो भय, लोभ और दबाव से परे, सत्य और न्याय की आवाज़ बने, तो संपूर्ण तंत्र स्वतः शुद्ध होने लगता है। और जब यह एक नहीं, बल्कि कई हों — तो यह आवाज़ एक जन-आंदोलन बन जाती है।


गाँव से राष्ट्र तक : एक नैतिक यात्रा

यह योजना न तो किसी भारीभरकम बजट पर निर्भर है और न ही किसी राजनीतिक प्रचार पर। इसकी विशेषता है – इसकी सरलता, सच्चाई और स्थायित्व।

  • इसमें दिखावा नहीं, धरातल पर काम है।
  • भाषण नहीं, बल्कि प्रत्यक्ष क्रियान्वयन है।
  • और सबसे महत्वपूर्ण – इसमें दिखावे का नेतृत्व नहीं, बल्कि मूल्यों पर आधारित नेतृत्व है।

इस योजना के अंतर्गत हर गाँव में एक प्रतिनिधि नियुक्त होता है जो गाँव की मूलभूत समस्याओं को चिन्हित करता है, सरकारी योजनाओं की जानकारी फैलाता है, और स्कूल, आंगनबाड़ी, स्वास्थ्य केंद्र तथा राशन प्रणाली की नियमित निगरानी करता है।
इस प्रक्रिया से गाँव में जवाबदेही, पारदर्शिता और सहभागिता की एक नई चेतना जागती है।

क्या यही तो असली लोकतंत्र नहीं है?


व्यवस्था से भिड़े बिना व्यवस्था में परिवर्तन

“एक गाँव – एक ईमानदार” योजना का सबसे बड़ा योगदान यह है कि यह विरोध नहीं, संवाद को प्राथमिकता देती है।
यह योजना मानती है कि बदलाव सड़क पर नारे लगाने से नहीं, बल्कि समाज के भीतर मूल्यों को पुनः प्रतिष्ठित करने से आता है।

प्रतिनिधियों को प्रशिक्षण देने हेतु आधुनिक तकनीकों जैसे व्हाट्सएप, ज़ूम, वॉइस नोट्स आदि का प्रयोग किया जाता है।
और सबसे अहम बात – यह प्रतिनिधि अकेला नहीं होता, बल्कि पूरे नियोधि फाउंडेशन व नियोधि मीडिया संघ की संगठित शक्ति उसके साथ खड़ी होती है।


एक प्रतिनिधि – एक विश्वास

हर ईमानदार प्रतिनिधि न केवल गाँव का मार्गदर्शक होता है, बल्कि वह समाज में ईमानदारी, कर्तव्यनिष्ठा और जवाबदेही का जीवंत प्रतीक बन जाता है।

जब गाँव का सचिव, स्कूल का प्रधानाचार्य, स्वास्थ्य केंद्र का कर्मचारी, या राशन डीलर यह जानता है कि कोई उन्हें देख रहा है — और वह देखने वाला केवल व्यक्ति नहीं, बल्कि एक संगठन का प्रतिनिधि है — तब व्यवहार में एक अनुशासन और नैतिक डर स्वतः उत्पन्न होता है।


अब आपकी बारी है

“एक गाँव – एक ईमानदार” कोई सरकारी योजना नहीं है — यह एक जन-आधारित नैतिक आंदोलन है।
यह आंदोलन हमें सिखाता है कि बदलाव केवल विचारों से नहीं आता, बल्कि जिम्मेदारियों के निर्वहन से आता है।

यदि आप चाहते हैं कि आपके गाँव में भी कोई ईमानदार प्रतिनिधि हो,
या यदि आप स्वयं इस यात्रा का हिस्सा बनना चाहते हैं,
तो आइए – जुड़िए नियोधि फाउंडेशन से।

क्योंकि,
“जब गाँव बदलेगा, तभी भारत बदलेगा।
और भारत तभी बदलेगा, जब हर गाँव में ईमानदारी जीवंत होगी।”